संपादकीय 1
मानवता के लिए खतरा, दुनिया में परमाणु हथियारों की दौड़" पाक से ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत "

भारत-पाकिस्तान के बीच पनपे विवाद ने एक बार फिर से मानवता पर छाये संकट के काले बादलों को खुले आसमां में आमंत्रण देना शुरू कर दिया है…विवाद की वजह चाहे जो कुछ भी हो मगर इतिहास गवाह है कि हारने वाला शख्स अगर रसूखदार हो और उसकी तालीम या सज्जन लोगों के साथ व्यवहार मित्रवत न हो तो वो शख्स अपना अहम बचाने की ख़ातिर दो-चार लोगों को नहीं परिवार,कुल और राष्ट्र को भी नहीं बल्कि समूची मानवता के लिये ही ख़तरा पैदा कर देने वाला होता है…बात सौ-हजार सालों की नहीं बल्कि आदिकाल समेत रामायण-महाभारत काल का भी अध्य्यन करें तो हमें उसमें भी कुछ अंश ऐसे मिलते हैं कि जब-जब भी हैवानों ने सत्ता पर कब्जा किया है उन्होंने हमेशा ही मानवता का गला घोंटने का ही प्रयास किया है…

सनातन संस्कृति की सभ्यता बताती है कि भगवान विष्णु के द्वादश अवतार ऐसे ही हैवानों के समूल नाश के लिये हुये…महाभारत काल में जब अश्वत्थामा ने अपने सामने अपने मित्र सगे-संबंधियों को युद्ध में खो दिया तो सामने खड़े अविनाशी परब्रम्हा को भी वो भूल गया और बिना परिणाम की चिंता किये अपने अहम को बचाने की ख़ातिर उसने महावीर अर्जुन को ब्रम्हास्त्र के संधान के लिये ललकार दे दी, काव्य-कृतियों में पठन-पाठन के दौरान ज्ञात होता है कि उस वक्त व्रम्हास्त्र वो अस्त्र हुआ करता था जिन्हें आज के युग में अगर परमाणु अस्त्र की संज्ञा दें तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी, उसी के संधान के लिये ललकार दे दी, नतीजतन उस वक्त जो कुछ भी हुआ उसके अंश आज हमारे काव्य कृतियों में पढ़ने-सुनने को मिलते हैं…आधुनिक युग में भी द्वितिय विश्व युद्ध के दौरान साल 1945 की उस मनहूस घटना को शायद ही कोई भूल सकता है जब अमेरिका ने अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिये जापान के दो बड़े शहरों नागाशाकी और हिरोसीमा पर परमाणु हथियार का प्रयोग करके उन्हें तबाह कर दिया था…लिहाज़ा आज भी उन शहरों की दशा और दिशा बेढंगी है…वहां इंसान तो पैदा हो रहे हैं मगर उनकी मनोदशा, शारीरिक संरचना, भूगौलिक परिस्थितियां और जीवन-यापन बकाया दुनिया से बेहद अजब-गजब हैं, भिन्न हैं…लिहाज़ा वर्तमान में भी भारत और पाकिस्तान के बीच पनपने वाला हर विवाद कहीं न कहीं परवाणु हथियारों की मार-धाड़ पर ही जाकर अटक जाता है…जब भी ये देश आमने-सामने होते हैं तो दुनिया की नज़रें हमेशा इस युद्द के नतीजे पर अटक जाती हैं, इसलिये क्योंकि पाकिस्तान के हुकमरानों. यहां की सेना..खूफिया एजेंसियों का कमांड कंट्रोल कहीं न कहीं दुनियाभर में आतंक की फैक्ट्री चलाने वाले आकाओं के इर्द-गिर्द ही घूमता नज़र आता है…जिससे शक ये पैदा होता है कि जिस देश का प्रजातंत्र…सेना और खूफिया एजेंसियां अगर दहशतगर्दों को ही अपना आका मान कर बैठ गई हों तो उनसे शांति अहिंसा और इंसानियत की अपेक्षा करना बेईमानी हो जाता है…शायद यही वजह है कि जब-जब भारत-पाक के बीच तनातनी बढ़ी है पाकियों के नापाक हुक्मरानों, जिम्मेदार औहदों पर बैठे नेताओं-सरपरस्तों ने परमाणु हथियारों का ही जिक्र किया है, इस दौरान ये सिरफिरे शायद ये भूल जाते हैं कि परमाणु हथियार कोई दिवाली या तीज-त्यौहारों पर चलाये जाने वाले वो पटाखे नहीं जिनके फट जाने के बाद सिर्फ धुंआ ही बाकि रह जाता है बल्कि ये वो हथियार होते हैं जिसे गलती से भी जिस किसी ने भी प्रयोग किया वो खुद तो इस दुनिया से जायेगा ही बल्कि मानवता के माथे पर भी कलंक का काला टीका लगाने का काम करेगा जिसे कभी नहीं धोया जा सकता, ऐसी स्थिति में परमाणु संपन्न राष्ट्रों को हर लिहाज़ से इस बाबत जिम्मेदारी से आगाह रहने की निहायत ज़रूरत है…

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